संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दुनिया में निमोनिया के चलते 8 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हुई। यह रोग अब सुसाध्य है और इससे बचाव भी संभव है, बावजूद इसके वैश्विक स्तर पर हर 39 सेकंड में एक बच्चे की मौत होती है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट अनुसार, निमोनिया के कारण जिन बच्चों की मौत हुई उनमें से अधिकतर की उम्र दो वर्ष से कम थी। 1,53,000 बच्चों की मौत जन्म के पहले महीने में ही हो गई। इस बीमारी के कारण सर्वाधिक 1,62,000 बच्चों की मौत नाईजीरिया में हुई।
भारत दूसरे स्थान पर है, जहां पिछले वर्ष 1,27,000 की मौत हुई। तीसरे स्थान पर पाकिस्तान है, जहां 58,000 बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी। चौथे व पांचवें पायदान पर दो और अफ्रीकी देश कांगो और इथीयोपिया हैं। कांगो में 40,000 और इथीयोपिया में 32,000 बच्चों की मौत हुई।
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दुनिया में हर साल निमोनिया से लाखों बच्चों की मौत होती है। वर्ष 2018 में इस बीमारी से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत अफ्रीकी देश नाइजीरिया के बाद दूसरे पायदान पर था। बीते वर्ष भारत में इसकी वजह से 1,27,000 बच्चों की मौत हुई।
यूनिसेफ ने कहा कि 5 वर्ष के कम उम्र के बच्चों में मौत के कुल मामलों में 15 फीसदी की वजह निमोनिया है। इसके बावजूद वैश्विक संक्रामक रोग शोध पर होने वाले खर्च में से महज 3 फीसदी खर्च इस रोग पर किया जाता है। निमोनिया के कारण होने वाली मौत और गरीबी के बीच भी मजबूत संबंध है। पेयजल तक पहुंच, पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नहीं होना और पोषण की कमी व भीतरी वायु प्रदूषण के कारण इस रोग का जोखिम बढ़ जाता है। निमोनिया के कारण होने वाली कुल मौत में से आधी की वजह वायु प्रदूषण है।
यह लगभग भूला जा चुका है कि निमोनिया महामारी है। इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए यूनिसेफ और अन्य स्वास्थ्य व बाल संगठनों ने वैश्विक कार्रवाई की अपील की। अगले साल जनवरी में स्पेन में ‘ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया’ पर मंथन होगा, जिसमें दुनियाभर के नेता शामिल होंगे।