एक समय की बात है जब भगवान विष्णु बैकुंठ धाम में नाग सैया पर बैठकर विश्राम कर रहे थे तथा साथ ही बगल में बैठी माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैरों को दबा रही थी। तब सामने बैठी माता लक्ष्मी के चेहरे को देखकर भगवान विष्णु जोर जोर से हंसने लगे, भगवान विष्णु के इस प्रकार हंसी को देखकर माता लक्ष्मी को प्रतीत हुआ कि भगवान विष्णु ने उनका मजाक उड़ाया है। माता लक्ष्मी को यह लगा कि भगवान विष्णु ने उनकी सुंदरता का उपहास किया है और उन्होंने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को यह श्राप दे दिया कि जिस चेहरे पर अभिमान करके आपने मेरा उपहास किया है, वह आपके शरीर से भी अलग हो जाएगा।
कुछ समय पश्चात एक युद्ध में भगवान विष्णु बहुत थक गए थे और थकान की वजह से भगवान विष्णु को नींद आ रही थी। नींद के वशीभूत होकर भगवान विष्णु ने अपने धनुष को धरती पर सीधा खड़ा कर दिया तथा उसके दूसरे सिरे पर अपना सिर टिका कर गहरी नींद में भगवान विष्णु सो गए। थकान की वजह से भगवान विष्णु को बड़ी अच्छी नींद आई तथा इसी दौरान स्वर्ग के सभी देवताओं ने एक यज्ञ का आयोजन किया।
ऐसा माना जाता है कि जब तक त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु तथा महेश यज्ञ में दी जाने वाले आहुतियों को स्वीकार नहीं करते, तब तक कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता है। जब यज्ञ समाप्ति की ओर बढ़ रहा था तब यज्ञ के पुरोहितों ने देवताओं से आग्रह किया कि भगवान विष्णु को निद्रा से उठाएं नहीं तो यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाएगा। देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर उन्हें नींद से जगाने की कोशिश की लेकिन वे सभी नाकाम रहे। उसके बाद उन्होंने धनुष की प्रत्यंचा काट दी जिसकी वजह से भगवान विष्णु का सिर धड़ से अलग हो गया| उसके बाद सभी देवताओं ने भगवान विश्वकर्मा के सहयोग से भगवान विष्णु के धड़ पर घोड़े के सर को जोड़ दिया। घोड़े के सर का भगवान विष्णु के धड़ पर जुड़ते ही भगवान विष्णु फिर से पुनः जीवित हो गए।