
सबके स्वर में एक ही संकल्प और उम्मीद तारी थी कि अब यहां रामराज्य जैसा स्वरूप साकार करने में सरकार कोई कमी नहीं छोड़ेगी। सभी में इस बात की ज्यादा प्रसन्नता थी कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या को लेकर भविष्य की सारी राजनीति का भी अंत कर दिया। जीत हुई तो सिर्फ रामलला की। रामनगरी अयोध्या और इससे सटे नवाबी शहर फैजाबाद में शनिवार सुबह तमाम अनहोनी व आशंकाओं से भरी थी।


दिन निकलने के साथ हनुमानगढ़ी, रामजन्मभूमि मार्ग, नयाघाट, रेलवे स्टेशन, राम की पैड़ी, शृंगारहाट आदि इलाकों में दुकानें भी खुलीं। भक्तों का मंदिरों में दर्शन-पूजन भी निर्बाध गति से चला। सिर्फ बाहर से आने वालों को अयोध्या के भीतरी इलाके में घुसने की इजाजत नहीं थी। मुस्लिम इलाकों में सख्त सुरक्षा व्यवस्था से लोग बेहद खुश नजर आए। सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही सुबह रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया, पूरी अयोध्या रामधुन में मगन हो गई। फैसले की हर बारीकी पर नजर रख रहे।

निर्मोही अखाड़ा के पक्षकार महंत दिनेंद्र दास के यहां का माहौल उत्साहपूर्ण था। यहां मौजूद संत वरुण दास, आचार्य नारायण मिश्र, अधिवक्ता प्रभात सिंह आदि रामजन्मभूमि की ओर शीश झुकाकर बार-बार प्रणाम करते दिखे। लेकिन महंत ने सौहार्द का संकल्प दिलाते हुए जयघोष से मना कर दिया। कारसेवकपुरम में टीवी से चिपके सखा रामलला के पक्षकार त्रिलोकीनाथ पांडेय भी सुप्रीम कोर्ट से संपूर्ण अधिकार सरकार को दिए जाने से खुश नजर आए।


बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी सुबह से बगैर स्नान किए फैसले के इंतजार में थे। बोले कि मीडिया चाय तक नहीं पीने दे रही है। जैसे ही फैसला आया उनके चेहरे पर न कोई शिकन थी न पश्चाताप। बोले, भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। इस फैसले ने राजनीति करने वालों को कोई तवज्जो नहीं दी। वहीं बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने मुस्लिम भाइयों से फैसले को दिल से स्वीकार करने और सौहार्द बनाने की अपील भी की।

मुस्लिम इलाकों में भी फैसले के बाद स्वागत के ही स्वर दिखे। अति संवेदनशील टेढ़ीबाजार में हाजी आफाक अहमद और शिक्षक इश्तियाक सिद्दिकी बोले-यह खुदाई की जीत है। राम और खुदा सब एक हैं, राजनीति करने वाले झगड़े फसाद खड़ा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वही सुनाया जो सारा जहान बनाने वाले का आदेश था। फैजाबाद शहर में भी हिंदू-मुस्लिम एक साथ न सिर्फ फैसला सुनते मिले बल्कि निर्णय में विवाद की जड़ समाप्त होने से बेहद खुश थे। दिल्ली के द्वारिका पुरी पंजाब नेशनल बैंक में कार्यरत राघवेंद्र कुमार बंदिशों की वजह से दर्शन से महरूम रहे लेकिन फैसला आने के बाद अपना अयोध्या आना धन्य बताया।