सीबीआई की छापेमारी टीमों में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, फॉरेंसिक ऑडिटर, कंप्यूटर फॉरेंसिक विशेषज्ञ, बैंकर और विभिन्न अन्य नियामक विभागों के अधिकारी शामिल थे। सीबीआई का आरोप है कि इन अधिकारियों ने आईएमए समूह की इकाइयों के खिलाफ जांच की और कंपनी के अनुकूल रिपोर्ट तैयार कर उसे क्लीन चिट देने का काम किया था।
इसके बाद आईएमए समूह की इकाइयों के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकी। इसका नतीजा यह हुआ कि पोंजी घोटाला दब गया। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कर्नाटक के विभिन्न विभागों को कई बार पत्र लिखकर आईएमए ग्रुप में हो रही अनियमितताओं के प्रति आगाह किया था।
आरबीआई की इन्हीं चिट्ठियों के आधार पर कर्नाटक के आरोपी पुलिस अफसरों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू की गई। सीबीआई ने कहा कि अब तक की जांच में यह सामने आया है कि कर्नाटक के शीर्ष पुलिस अफसरों ने जानबूझकर आईएमए ग्रुप की इकाइयों के खिलाफ जांच में ढिलाई बरती और कंपनी को बचाने के लिए क्लीन चिट दी।
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सीबीआई ने आई-मोनेटरी एडवाइजरी (आईएमए) पोंजी घोटाले के सिलसिले में कर्नाटक पुलिस के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के परिसरों समेत उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में 15 जगहों पर छापे मारे। सीबीआई अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी की टीमों ने बंगलूरू में 11 स्थानों के अलावा मांड्या, रामनगर, बेलगाम व मेरठ में एक-एक स्थान पर तलाशी ली।
आर्थिक अपराध शाखा सीआईडी के तत्कालीन आईजी हेमंत निंबलकर, सीआईडी के उप पुलिस अधीक्षक ईबी श्रीधर, ईस्ट बंगलूरू के तत्कालीन डीसीपी अजय हिलोरी, कमर्शियल स्ट्रीट पुलिस थाने के इंस्पेक्टर और एसएचओ एम रमेश, कमर्शियल स्ट्रीट पुलिस थाने के एसआई गौरी शंकर, बंगलूरू नॉर्थ उप मंडल के तत्कालीन एसीपी और केपीआईडी कानून के तहत सक्षम प्राधिकार एलसी नागराज, बंगलूरू शहरी जिला के तत्कालीन डीसीओ बीएम विजयशंकर के आवासों पर छापे पड़े। इसके अलावा बंगलूरू नॉर्थ उप मंडल के तत्कालीन गांव लेखाकार मंजूनाथ और बंगलूरू विकास प्राधिकरण के तत्कालीन के मुख्य प्रबंधक पीडी कुमार के घरों की भी तलाशी ली गई।