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दुनियाभर में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंसर के 90 प्रतिशत मामले मुंह और फेफड़े से संबंधित पाए जा रहे हैं. साथ ही मरीजों में अन्य तरह के कैंसर भी देखे जा रहे हैं. टाटा मेमोरियल सेंटर के हेड-नेक कैंसर सर्जन प्रोफेसर डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा, “मेरे लगभग 90 फीसदी मरीज तंबाकू उपभोक्ता हैं. हमने पाया है कि धुआं रहित तंबाकू सेवन करने वालों को कम उम्र में ही कैंसर हो जाता है और इनकी मृत्यु दर भी अधिक है.”
ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण 2017 के अनुसार, देश में धूम्रपान करने वाले 10.7 प्रतिशत वयस्क भारतीय 15 वर्ष और उससे अधिक की तुलना में धूम्रपान धुआं रहित तंबाकू का सेवन करने वाले 21.4 फीसदी हैं. हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान धुआं रहित तंबाकू का सेवन करती हैं, उनमें एनीमिया होने का खतरा 70 प्रतिशत अधिक होता है. यह कम जन्म के वजन और फिर भी दो-तीन बार जन्म के जोखिम को बढ़ाता है. महिलाओं में धुआं रहित तंबाकू उपयोगकर्ताओं में मुंह के कैंसर का खतरा पुरुषों की तुलना में 8 गुना अधिक होता है.
उन्होंने कहा कि इसी तरह धुआं रहित तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा पुरुषों की तुलना में दो से चार गुना अधिक होता है. इस तरह की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में मृत्युदर भी अधिक होती है.
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संरक्षक व मैक्स अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. हरित चतुर्वेदी ने कहा, “धूम्र रहित तंबाकू के उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ी है, क्योंकि पहले के तंबाकू विरोधी विज्ञापनों में सिगरेट और बीड़ी की तस्वीरें ही दिखाई जाती थी. लोगों में धारणा बन गई कि केवल सिगरेट और बीड़ी का सेवन ही हानिकारक है, इसलिए धीरे-धीरे धुआं रहित तंबाकू की खपत बढ़ गई.”
उन्होंने कहा, “लोग लंबे समय तक तंबाकू चबाते हैं, ताकि निकोटीन रक्त में पहुंचे. इस तरह वे लंबे समय तक बैक्टीरिया के संपर्क में रहते हैं. ऐसे में कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.”