लोकसभा चुनाव तो पूरे देश में हुए। पर चुनाव का एक प्रमुख केंद्रबिंदू पश्चिम बंगाल था। चुनाव परिणामों ने साबित किया है कि पश्चिम बंगाल में अब ममता बनर्जी का किला भी कमजोर होने लगा है। भाजपा ने राज्य में अप्रत्याशित सफलता पाई है। इसका श्रेय निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का कुशल प्रबंधन औऱ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की दीर्घकालिक योजनाओं को जाता है।
त्रिपुरा के बाद यह दूसरा राज्य पूर्व में इलाके में है, जहां भाजपा ने जबरजस्त सेंध लगा दी है। ये राज्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये दोनों राज्य किसी समय मे लेफ्ट के गढ़ थे। चुनाव परिणामों ने साफ संकेत दिए है कि बंगाल में अब विधानसभा चुनाव दिलचस्प होगा। लोकसभा में भाजपा 18 सीटें बंगाल में जीत सकती है। चुनावी ट्रेंड के मुताबिक तृणमूल 23 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। सीपीएम का बंगाल में सफाया हो गया है।
बंगाल की रोचक कहानी
कांग्रेस 1 सीट जीत रही है। टीएमसी के लिए खतरे की घंटी यह है कि भाजपा को राज्य में 41 प्रतिशत वोट मिले है। जबकि टीएमसी को 39.55 प्रतिशत वोट मिले है। पश्चिम बंगाल को भाजपा और टीएमसी ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। आज के चुनाव परिणाम बता रहे है कि भाजपा ने राज्य के कई इलाकों में सफलता पायी है।
अंतिम चरण के चुनाव से ठीक पहले बंगाल में जोरदार हिंसा हुई थी। कोलकाता में अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा हुई। चपेट में ईश्वरचंद्रविदा सागर की मूर्ति आ गई अमित शाह को अपना रोड शो बीच में ही रोकना पड़ा। चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी औऱ ममता बनर्जी की दुश्मनी व्यक्तिगत स्तर पर आ गई थी। दोनों की दुश्मनी इस हदतक पहुंच गई है कि जेल भेजने तक की धमकी तक दे डाली।
त्रिपुरा के बाद यह दूसरा राज्य पूर्व में इलाके में है, जहां भाजपा ने जबरजस्त सेंध लगा दी है। ये राज्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये दोनों राज्य किसी समय मे लेफ्ट के गढ़ थे। चुनाव परिणामों ने साफ संकेत दिए है कि बंगाल में अब विधानसभा चुनाव दिलचस्प होगा। लोकसभा में भाजपा 18 सीटें बंगाल में जीत सकती है। चुनावी ट्रेंड के मुताबिक तृणमूल 23 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। सीपीएम का बंगाल में सफाया हो गया है।
बंगाल की रोचक कहानी
कांग्रेस 1 सीट जीत रही है। टीएमसी के लिए खतरे की घंटी यह है कि भाजपा को राज्य में 41 प्रतिशत वोट मिले है। जबकि टीएमसी को 39.55 प्रतिशत वोट मिले है। पश्चिम बंगाल को भाजपा और टीएमसी ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। आज के चुनाव परिणाम बता रहे है कि भाजपा ने राज्य के कई इलाकों में सफलता पायी है।
अंतिम चरण के चुनाव से ठीक पहले बंगाल में जोरदार हिंसा हुई थी। कोलकाता में अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा हुई। चपेट में ईश्वरचंद्रविदा सागर की मूर्ति आ गई अमित शाह को अपना रोड शो बीच में ही रोकना पड़ा। चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी औऱ ममता बनर्जी की दुश्मनी व्यक्तिगत स्तर पर आ गई थी। दोनों की दुश्मनी इस हदतक पहुंच गई है कि जेल भेजने तक की धमकी तक दे डाली।
टीएमसी की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर भाजपा का हिंदूवाद भारी
ममता बनर्जी की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति फेल हो गई। बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिमों के सहारे ममता बंगाल को अभेद किला बनाना चाहती थी। लेकिन यह संभव नहीं हो सका। भाजपा को लोकसभा चुनाव में 41 प्रतिशत वोट मिले हैं। भाजपा 18 सीटें जीत सकती है। 2014 में टीएमसी को 34 सीटें मिली थी। अब घटकर यह 22 या 23 तक पहुंच सकती है।
भाजपा अपनी रणनीति में कामयाब रही है। क्या ममता ही मुस्लिम तुष्टिकऱण ही भाजपा के लिए रामबाण सिद्ध हो गया? पश्चिम बंगाल में भाजपा को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का लाभ भाजपा को जबरदस्त तरीके से मिला। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 20 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था। भाजपा 18 सीटें जीत रही है। सात चरणों के दौरान जिस तरह से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा हुई, उससे यह स्पष्ट ह गया था कि दोनों दलों के बीच जमीन पर जबरदस्त संघर्ष था।
क्या भाजपा से घबरा रही थी टीएमसी?
ममता में भाजपा की रणनीति से जबरजस्त घबराहट थी। अगर पश्चिम बंगाल में चुनाव टीएमसी के पक्ष में एकतरफा होता, तो ममता बनर्जी भाजपा के प्रति इतनी आक्रमक नहीं होती। टीएमसी और बीजेपी के वर्करों के बीच हिंसक लड़ाई नहीं होती। यह लड़ाई का रूप वैसा ही था, जैसे किसी जमाने में लेफ्ट और टीएमसी के वर्करों के बीच होता था। ममता चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस औऱ सीपीएम के प्रति आक्रमकता छोड़ चुकी थी। ममता पूरे चुनाव के दौरान भाजपा के प्रति आक्रमक थी।
आक्रमकता का कारण भाजपा का हिंदू कार्ड था। भाजपा का हिंदू कार्ड पश्चिम बंगाल में काफी हद तक चल गया था। दोनों दलों के बीच हिंसक संघर्ष से स्पष्ट था कि बंगाल में भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति को जमीन मिल गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 17 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि सीपीएम को 30 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार सीपीएम के वोट शेयर में जोरदार गिरावट है। ये वोट भाजपा की तरफ गए है। टीएमसी के वर्करों की गुंडागर्दी से परेशान सीपीएम समर्थकों ने कई लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को वोट किया।
ममता बनर्जी की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति फेल हो गई। बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिमों के सहारे ममता बंगाल को अभेद किला बनाना चाहती थी। लेकिन यह संभव नहीं हो सका। भाजपा को लोकसभा चुनाव में 41 प्रतिशत वोट मिले हैं। भाजपा 18 सीटें जीत सकती है। 2014 में टीएमसी को 34 सीटें मिली थी। अब घटकर यह 22 या 23 तक पहुंच सकती है।
भाजपा अपनी रणनीति में कामयाब रही है। क्या ममता ही मुस्लिम तुष्टिकऱण ही भाजपा के लिए रामबाण सिद्ध हो गया? पश्चिम बंगाल में भाजपा को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का लाभ भाजपा को जबरदस्त तरीके से मिला। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 20 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था। भाजपा 18 सीटें जीत रही है। सात चरणों के दौरान जिस तरह से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा हुई, उससे यह स्पष्ट ह गया था कि दोनों दलों के बीच जमीन पर जबरदस्त संघर्ष था।
क्या भाजपा से घबरा रही थी टीएमसी?
ममता में भाजपा की रणनीति से जबरजस्त घबराहट थी। अगर पश्चिम बंगाल में चुनाव टीएमसी के पक्ष में एकतरफा होता, तो ममता बनर्जी भाजपा के प्रति इतनी आक्रमक नहीं होती। टीएमसी और बीजेपी के वर्करों के बीच हिंसक लड़ाई नहीं होती। यह लड़ाई का रूप वैसा ही था, जैसे किसी जमाने में लेफ्ट और टीएमसी के वर्करों के बीच होता था। ममता चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस औऱ सीपीएम के प्रति आक्रमकता छोड़ चुकी थी। ममता पूरे चुनाव के दौरान भाजपा के प्रति आक्रमक थी।
आक्रमकता का कारण भाजपा का हिंदू कार्ड था। भाजपा का हिंदू कार्ड पश्चिम बंगाल में काफी हद तक चल गया था। दोनों दलों के बीच हिंसक संघर्ष से स्पष्ट था कि बंगाल में भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति को जमीन मिल गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 17 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि सीपीएम को 30 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार सीपीएम के वोट शेयर में जोरदार गिरावट है। ये वोट भाजपा की तरफ गए है। टीएमसी के वर्करों की गुंडागर्दी से परेशान सीपीएम समर्थकों ने कई लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को वोट किया।
क्या रणनीति तैयार की भाजपा ने?
भाजपा ने बंगाल में तरीके से जमीन तैयार की। पिछले दो सालों में रामनवमी के दौरान निकाले गए जुलूसों ने ममता का खासा नुकसान किया। क्योंकि ममता ने कई बार जुलूसों मे बाधा डालने की कोशिश की। इसका लाभ भाजपा को मिला। भाजपा ने ममता के अल्पसंख्यक तुष्टिकऱण का जवाब हनुमान जयंती से दिया। इसका भी लाभ भाजपा को मिला। परिणाम सामने है।
30 साल तक लेफ्ट के गढ़ में रहे पश्चिम बंगाल में भाजपा का रथ दनदनाता हुआ घुस रहा है। बंगाल के हिंदू युवा भाजपा के हिंदुत्ववादी पालिटिक्स से आकर्षित हुए। भाजपा ने हिंदू युवाओं में भाजपा के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए इंदौर के तेजतर्रार नेता राजेश विजयवर्गीय को काफी पहले ही पश्चिम बंगाल में लगा दिया था। विजयवर्गीय की रणनीति कुछ हदतक जमीन पर काम करते दिख रही है।
भाजपा ने बंगाल में तरीके से जमीन तैयार की। पिछले दो सालों में रामनवमी के दौरान निकाले गए जुलूसों ने ममता का खासा नुकसान किया। क्योंकि ममता ने कई बार जुलूसों मे बाधा डालने की कोशिश की। इसका लाभ भाजपा को मिला। भाजपा ने ममता के अल्पसंख्यक तुष्टिकऱण का जवाब हनुमान जयंती से दिया। इसका भी लाभ भाजपा को मिला। परिणाम सामने है।
30 साल तक लेफ्ट के गढ़ में रहे पश्चिम बंगाल में भाजपा का रथ दनदनाता हुआ घुस रहा है। बंगाल के हिंदू युवा भाजपा के हिंदुत्ववादी पालिटिक्स से आकर्षित हुए। भाजपा ने हिंदू युवाओं में भाजपा के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए इंदौर के तेजतर्रार नेता राजेश विजयवर्गीय को काफी पहले ही पश्चिम बंगाल में लगा दिया था। विजयवर्गीय की रणनीति कुछ हदतक जमीन पर काम करते दिख रही है।
ममता का प्रबंधन भाजपा को रोकने में नाकामयाब
पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में बूथ कंट्रोल का महत्व होता है। ग्रामीण इलाकों में टीएमसी दवारा बूथ कंट्रोल करने की बात लगातार आई। इसके बावजूद भाजपा ने खासी सफलता हासिल की है। हालांकि गांवों में भाजपा का बूथ मैनेजमेंट कमजोर था। लेकिन गांवों में भाजपा के हिंदुत्व ने चुपचाप भाजपा के पक्ष में माहौल बना दिया।
भाजपा समर्थक मतदाताओं ने चुपचाप भाजपा को वोट दिया। वे बेशक टीएमसी के कैडरों से डर रहे थे। लेकिन बिना हंगामे के उन्होंने वोट डाला। बूथ मैनेजमेंट में टीएमसी जरूर बाहुबल के माध्यम से आगे था, उसके बावजूद जनता ने भाजपा को खासा पसंद किया है। दरअसल इसी बूथ मैनेजमेंट के बल पर सीपीएम ने बंगाल में तीन दशक तक राज किया था। इस पर ममता बनर्जी को खासी उम्मीद थी।
पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में बूथ कंट्रोल का महत्व होता है। ग्रामीण इलाकों में टीएमसी दवारा बूथ कंट्रोल करने की बात लगातार आई। इसके बावजूद भाजपा ने खासी सफलता हासिल की है। हालांकि गांवों में भाजपा का बूथ मैनेजमेंट कमजोर था। लेकिन गांवों में भाजपा के हिंदुत्व ने चुपचाप भाजपा के पक्ष में माहौल बना दिया।
भाजपा समर्थक मतदाताओं ने चुपचाप भाजपा को वोट दिया। वे बेशक टीएमसी के कैडरों से डर रहे थे। लेकिन बिना हंगामे के उन्होंने वोट डाला। बूथ मैनेजमेंट में टीएमसी जरूर बाहुबल के माध्यम से आगे था, उसके बावजूद जनता ने भाजपा को खासा पसंद किया है। दरअसल इसी बूथ मैनेजमेंट के बल पर सीपीएम ने बंगाल में तीन दशक तक राज किया था। इस पर ममता बनर्जी को खासी उम्मीद थी।
टीएमसी के भारी जीत के तर्क ध्वस्त
टीएमसी यह मानकर चल रही थी कि भाजपा का वोट जरूर बढ़ेगा लेकिन सीटें नहीं बढ़ेगी। भाजपा को टीएमसी ज्यादा से ज्यादा 6 सीटें दे रही थी। लेकिन अब भाजपा 18 के पास पहुंच चुकी है। टीएमसी को उम्मीद थी कि बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम अल्पसंख्यक और गरीब हिंदुओं के वोटों के आधार पर टीएमसी 30 से ज्यादा सीटें जीतेगी।
ममता बनर्जी की कल्याणकारी नीतियां है, जिसमें 2 रुपए किलो चावल गरीबों को मिलता है है पर भी ममता बनर्जी को खासा भरोसा रहा है। लेकिन चिटफंड स्कैम ने गरीबों के बीच ममता की छवि जरूर खराब की है। ये सारे मुद्दे को भाजपा ने तरीके से उठाया। चिटफंड घोटाले में बंगाल के ज्यादातर गरीबों का पैसा डूब गया था। इसका नुकसान निश्चित तौर पर टीएमसी को हुआ है
टीएमसी यह मानकर चल रही थी कि भाजपा का वोट जरूर बढ़ेगा लेकिन सीटें नहीं बढ़ेगी। भाजपा को टीएमसी ज्यादा से ज्यादा 6 सीटें दे रही थी। लेकिन अब भाजपा 18 के पास पहुंच चुकी है। टीएमसी को उम्मीद थी कि बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम अल्पसंख्यक और गरीब हिंदुओं के वोटों के आधार पर टीएमसी 30 से ज्यादा सीटें जीतेगी।
ममता बनर्जी की कल्याणकारी नीतियां है, जिसमें 2 रुपए किलो चावल गरीबों को मिलता है है पर भी ममता बनर्जी को खासा भरोसा रहा है। लेकिन चिटफंड स्कैम ने गरीबों के बीच ममता की छवि जरूर खराब की है। ये सारे मुद्दे को भाजपा ने तरीके से उठाया। चिटफंड घोटाले में बंगाल के ज्यादातर गरीबों का पैसा डूब गया था। इसका नुकसान निश्चित तौर पर टीएमसी को हुआ है